क्या उत्तराखंड के सरकारी और निजी सभी शिक्षा संस्थानों में, उत्तराखंड से संबंधित जानकारी देने के लिए एक विषय नहीं होना चाहिए? जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड की ब्रांडिंग में मदद करेगा।
Category: विचार
जौहर यूनीवर्सिटी को बचाना हम सबका फर्ज़ है
एक मीटिंग में जब मुलायम सिंह जी इन बातों का वर्णन कर रहे थे तो वहां मौजूद आज़म ख़ान भावनाओं में आकर फूट-फूट कर रोने लगे थे। तब उन्होंने भगवान से दुआ की थी कि अल्लाह चाहे तो एक दिन को ही सही अज़ीज़ क़ुरैशी को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बना दें ताकि वह यूनिवर्सिटी के इस बिल को मंज़ूरी दे देंl
अभिव्यक्ति की आज़ादी की सीमा कहां है?
साकाल पेपर्स जैसे मामले में अदालत किस तरह फैसला सुनाए? संविधान कुछ उचित प्रतिबंधों के साथ केवल बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। जब बोलने की आज़ादी पर क़ानून बन रहा था तब संविधान सभा में बहस के दौरान अख़बारों के एकाधिकार के मुद्दे पर वास्तव में संविधान निर्माताओं ने कोई चर्चा ही नहीं की थी।
पेगासस प्रोजेक्ट अनैतिक क्यों हैं और देशहित में क्यों नहीं है?
हाल ही में दुनिया के चुनिंदा मीडिया संस्थानों ने खुलासा किया कि पेगासस स्पाइवेयर के ज़रिए नेताओं, नौकरशाहों, उद्योगपतियों, जजों औऱ पत्रकारों समेत तमाम अहम लोगों के फोन को निशाना बनाया गया और उनकी गतिविधियों पर नज़र रखी गई और उनके फोन एक्सेस किए गए।
बा-इज़्ज़त बरी हमें कहानी का वो हिस्सा सुनाती है जो हमें सुनने नहीं दिया गया
एक तो मुसलमान ऊपर से आतंकवाद के आरोपी। ऐसे में मामलों में मीडिया का निष्पक्ष रह पाना तक़रीबन नामुमकिन है। हम अकसर साम्प्रदायिक दंगों और मज़हबी एजेंडा वाली ख़बरों में ऐसा देखते हैं। इसमें मीडिया में एक वर्ग के प्रतिनिधित्व का अभाव तो है ही, दूसरे पक्ष के लिए मन में बुन रखी अवधारणाएं भी हैं। इसके अलावा आतंकवाद से जुड़े मामलों में मीडिया पर अतिरिक्त जनदबाव भी होता है। ख़ैर, इस सबका असर होता है कि दूसरे पक्ष को सुना ही नहीं जाता। बा-इज़्ज़त बरी ऐसे ही सोलह मामलों में दूसरा पक्ष है।