बा-इज़्ज़त बरी हमें कहानी का वो हिस्सा सुनाती है जो हमें सुनने नहीं दिया गया

एक तो मुसलमान ऊपर से आतंकवाद के आरोपी। ऐसे में मामलों में मीडिया का निष्पक्ष रह पाना तक़रीबन नामुमकिन है। हम अकसर साम्प्रदायिक दंगों और मज़हबी एजेंडा वाली ख़बरों में ऐसा देखते हैं। इसमें मीडिया में एक वर्ग के प्रतिनिधित्व का अभाव तो है ही, दूसरे पक्ष के लिए मन में बुन रखी अवधारणाएं भी हैं। इसके अलावा आतंकवाद से जुड़े मामलों में मीडिया पर अतिरिक्त जनदबाव भी होता है। ख़ैर, इस सबका असर होता है कि दूसरे पक्ष को सुना ही नहीं जाता। बा-इज़्ज़त बरी ऐसे ही सोलह मामलों में दूसरा पक्ष है।

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