चंगेज़ ख़ान एडवोकेट
पेगासस जासूसी कांड को लेकर देश की राजनीति में उबाल है लेकिन आम जनता में इसे लेकर कोई ख़ास हलचल नहीं है। इसकी दो बड़ी वजहें हैं। एक, लोग समझ रहे हैं कि विपक्षी नेताओं पर नज़र रखना राजनीति का हिस्सा है दूसरे इससे देश या आम लोगों का कोई नुक़सान नहीं है। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है?
हाल ही में दुनिया के चुनिंदा मीडिया संस्थानों ने खुलासा किया कि पेगासस स्पाइवेयर के ज़रिए नेताओं, नौकरशाहों, उद्योगपतियों, जजों औऱ पत्रकारों समेत तमाम अहम लोगों के फोन को निशाना बनाया गया और उनकी गतिविधियों पर नज़र रखी गई और उनके फोन एक्सेस किए गए। भारत में तीन सौ से ज़्यादा मोबाइल और टेलीफोन नंबर पेगासस के डेटाबेस में हैं। इसमें सबसे बड़ी बात है कि पेगासस स्पाईवेयर को बनाने वाली इज़रायली कंपनी इसे सिर्फ सरकारों को ही उपलब्ध कराती है। ज़ाहिर है इस खुलासे के बाद सियासी हंगामा तो होना ही था।
संसद से सड़क तक विपक्षी दलों ने विरोध दर्ज कराया, कुल लोग अदालत भी गए लेकिन फिर भी प्रबुद्ध लोगों के अलावा आम जनता में इसे लेकर कोई ख़ास हलचल नहीं हुई। बहुत से लोग समझ ही नहीं पा रहे कि इससे उन्हें क्या फर्क़ पड़ता है और किस तरह यह देश की सुरक्षा के लिए भी ख़तरा हो सकता है।
इस तरह की जासूसी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिलने वाले निजता के अधिकार का खुला उल्लंघन है। हालांकि कुछ लोग तर्क या कहिए कि कुतर्क दे सकते हैं कि सरकारें ऐसा करती ही हैं या फिर देश हित में जासूसी ज़रूरी हो जाती है, या कि जासूसी की ज़द में बड़े लोग हैं, हमें क्या? लेकिन इस तरह के तर्क या तो अज्ञानता हैं, या असलियत से मुंह फेरना या फिर जानबूझ कर ढिढाई दिखाना।
राष्ट्रहित में जासूसी और किसी के फोने की फोटो गैलरी, इनबॉक्स चैट या फिर मेल डेटा तक पहुंच बिना की स्पष्ट वजह, आतंकवाद से जुड़े मामले या फिर बेहद अकल्पनीय परिस्थिति में भी एक हद तक ही जायज़ ठहराई जा सकती हैं। यहां जिन लोगों के ख़िलाफ स्पाईवेयर का इस्तेमाल किया गया है वह न तो आतंकी हैं और न ही देश विरोधी। इनमें मुख्यधारा के राजनीतिज्ञ, सिस्टम में सीधी पहुंच रखने वाले नौकरशाह, निष्पक्ष व्यवस्था का हिस्सा माने जाने वाले जज और ख़ुद सरकार में शामिल मंत्री भी हैं। ज़ाहिर है जासूसी की नीयत देशहित नहीं, किसी एक पार्टी या किसी एक नेता का हित है।
अब लोग कहेंगे कि इससे हमें क्या या देश का क्या नुक़सान हुआ। तो सीधी सी बात है कि यह अनैतिक है, असंवैधानिक है, और इसकी अनदेखी सरकार को और ज़्यादा अनैतिक काम करने का बल देगी। आज आप शिकार नहीं हैं लेकिन इसकी गारंटी नहीं है कि कल नहीं होंगे। एक मज़बूत लोकतंत्र में चलने फिरने और और तब तक अपना जीवन जीने की न्यूनतम आज़ादी एक शर्त है जब तक आप ख़ुद लोकतंत्र, तंत्र या और दूसरे लोगों के लिए ख़तरा नहीं बन रहे हो। सरकारों को अनैतिक और ग़ैरक़ानूनी चीज़ों पर नज़र रखने का हक़ है लेकिन लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी, उनके फोन, निजी वार्तालाप, बेडरुम चैट या फिर अति निजी फोटो, वीडियो तक पहुंचने का नैतिक अधिकार नहीं है।
पेगासस जैसे स्पाईवेयर के साथ मामला सिर्फ नैतिक नहीं है बल्कि यह मसला देश की सुरक्षा से भी जुड़ा है। पहली बात यह न सिर्फ थर्ड पार्टी सिस्टम है बल्कि एक ऐसे तीसरे देश को हमारे गोपनीय मसलों में एक्सेस दे रहा है जो जासूसी, दूसरे देशों के साथ रिश्ते ख़राब कराने और अपने हित में फाल्स फ्लैग आपरेशंस के लिए जाना जाता है। क्या इज़रायल जैसे देश की किसी कंपनी से अधिकारिक तौर पर इस तरह का स्पाइवेयर लेकर इस्तेमाल करने वाले इसके ख़तरे समझते हैं?
जिन लोगों को लगता है कि पेगासस एक मित्र देश की कंपनी ने मुहैया कराया है तो वह उसका जासूसी और अपने मित्र देशों के तंत्र में दख़ल का इतिहास भी जान लें। इज़रायल के जासूसी तंत्र की गतिविधियों से अमेरिका, तुर्की, मिस्र और यूके जैसे घनिष्ठ सहयोगी नहीं बच पाए फिर हम कैसे उस पर भरोसा रखें। पेगासस के ज़रिए अपने नेताओं, तंत्र, सामरिक गतिविधियों तक पहुंच देना पठानकोट मामले में पाकिस्तानी ख़ुफिया एजेंसी आईएसआई को एक्सेस देने से कम नुक़सानदेह नहीं है। अभी लोग इसके ख़तरे नहीं समझ रहे हैं लेकिन लंबी अवधि में इसका अहसास होगा जब हमें पता चलेगा कि हमारा और भी अति गोपनीय डेटा किसी थर्ड पार्टी या तीसरे देश के डेटाबेस में है।
- लेखक पेशे से वकील हैं और दिल्ली स्थित लीगल फर्म दीवान एडवोकेट्स में मैनेजिंग पार्टनर हैं