बच्चों को उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास और दर्शन की  जानकारी अवश्य दी जानी चाहिए

बच्चों को उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास और दर्शन की जानकारी अवश्य दी जानी चाहिए

प्रेम बहुखंडी

कुछ दिन पहले किसी मित्र के घर एक परिवार से मुलाकात हुई, वो दोनों पति पत्नी देहरादून में पढ़े लिखे थे। अब विदेश में रहते हैं। उनके पास देहरादून की बहुत अच्छी यादें थी, मसलन देहरादून के मोमोज़, कुछ युवाओं के बैठने के अड्डे, मैगी पॉइंट, कुछ मॉल और बहुत कुछ। लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि उत्तरांचल का नाम बदलकर उत्तराखंड हो गया है, उत्तराखंड में राजधानी का मुद्दा क्या है, कुल कितने जिले हैं, गढ़वाल कुमाऊँ का क्या मामला है? कुल कितनी बोली भाषाएं है? 

‘बेडु पाका बारामासा’ गीत के अलावा किसी दूसरे गीत के बारे में पता भी नहीं था, बल्कि उन्हें तो यह भी नहीं पता था कि उत्तराखंड में “बबली तेरो मोबाइल, हाय रे तेरो स्टायल” जैसे अंतराष्ट्रीय स्तर के गीत भी हैं। वे, अपने आपको देहरादून का बोलने में गौरवांवित महसूस कर रहे थे, लेकिन अफसोस की बात है कि उन्हें यहां की संस्कृति, इतिहास, और भूगोल की सामान्य जानकारी भी नहीं है।

जब मैंने उनके आगे यह सवाल खड़ा किया तो वो चौंक गए और उनको अहसास हुआ कि जिस शहर/ राज्य में लगभग 15 साल बिताए, बच्चे से युवा हुए, जिस शहर का होने के अहसास से उन्हें खुशी और गौरव का अनुभव होता है, उन्होंने उस जगह के इतिहास, भूगोल, संस्कृति को जानने का प्रयास क्यों नहीं किया?

और यहीं से, मेरी आज की टिप्पणी का सवाल खड़ा होता है, कि क्या यह उनकी गलती है? या शिक्षा व्यवस्था और उत्तराखंड राज्य की सरकार की? क्या उत्तराखंड के सरकारी और निजी सभी शिक्षा संस्थानों में, उत्तराखंड से संबंधित जानकारी देने के लिए एक विषय नहीं होना चाहिए? जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड की ब्रांडिंग में मदद करेगा। क्यों सारी संस्कृति, और भाषा के उत्थान की जिम्मेदारी, पर्वतीय क्षेत्र के गरीब बच्चों के कंधे पर डाली जा रही है, जबकि निजी विद्यालयों के बच्चों के मजबूत कंधे, उत्तराखंड के नाम पर सिर्फ मोमोज को ही जानते हैं? 

मेरा सुझाव है, कि उत्तराखंड के सभी प्रकार के शिक्षा संस्थानों, स्कूल से लेकर तकनीकी संस्थान, मेडिकल कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज, में, उस विषय के अनुसार, उत्तराखंड का इतिहास, भूगोल और संस्कृति को पढ़ाया जाना चाहिए। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास और दर्शन की भी जानकारी अवश्य दी जानी चाहिए।

  • लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और उत्तराखंड राज्य आंदोलन से जुड़े रहे हैं।
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